वर्धमान नामक नगर में दंतिल नाम का एक बहुत ही कुशल और समृद्ध व्यापारी रहता था। उसकी योग्यता
और काबिलियत को देखकर राजा ने उसे राज्य का प्रशासक बना दिया। दंतिल ने अपने बुद्धिमत्ता और प्रबंधन से राजा और प्रजा दोनों को खुश रखा।
कुछ समय बाद दंतिल ने अपनी बेटी के विवाह का आयोजन किया। उसने इस खुशी के अवसर पर एक भव्य भोज
का आयोजन किया और सभी को आमंत्रित किया, चाहे वे राजा के दरबारी हों या प्रजा के सामान्य लोग। भोज में महल का एक साधारण सेवक
भी आया, जो महल में झाड़ू लगाने का काम करता था।
सभी मेहमानों के बीच, वह सेवक गलती से एक ऐसी कुर्सी पर बैठ गया, जो केवल राजपरिवार के सदस्यों के लिए आरक्षित थी। यह
देखकर दंतिल को बहुत गुस्सा आया। उसने सेवक को सबके सामने डांटकर वहां से भगा दिया। सेवक को यह अपमान सहन नहीं हुआ, और
उसने तय किया कि वह दंतिल को सबक सिखाएगा।
अगले दिन, सेवक महल में राजा के कक्ष में झाड़ू लगा रहा था। राजा अर्धनिद्रा में थे। सेवक ने जान-बूझकर बड़बड़ाना शुरू किया, “इस व्यापारी दंतिल
की हिम्मत तो देखो, वह रानी के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है।” राजा ने यह सुनकर अपनी आंखें खोल लीं और सेवक से पूछा, “क्या तुमने ऐसा कुछ देखा है?”
सेवक तुरंत राजा के चरणों में गिर पड़ा और बोला, “महाराज, मुझे क्षमा करें। मैं कल रात सो नहीं सका, इसलिए नींद पूरी न होने के कारण
बड़बड़ा रहा था।” हालांकि, राजा के मन में संदेह उत्पन्न हो गया।
धीरे-धीरे, राजा ने दंतिल के महल में आने-जाने पर रोक लगा दी और उसके अधिकार छीन लिए। जब दंतिल ने यह देखा तो वह
चकित रह गया। उसी समय, पास खड़ा सेवक हंसते हुए बोला, “अरे, दंतिल जी, क्या हुआ? याद है, आपने मुझे अपने भोज में कैसे अपमानित किया था? अब
वैसा ही स्वाद आपको भी चखने को मिल रहा है।”
यह सुनकर दंतिल को पूरी बात समझ में आ गई। उसने सेवक से माफी मांगी और उसे अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया।
उसने सेवक की खूब आवभगत की और अपने व्यवहार के लिए खेद व्यक्त किया।
सेवक खुश होकर बोला, “आपने अपनी गलती मान ली है। अब मैं राजा से आपकी खोई प्रतिष्ठा वापस दिलाऊंगा।”
अगले दिन, सेवक ने राजा के कक्ष में झाड़ू लगाते हुए फिर से बड़बड़ाना शुरू किया, “अरे भगवान, हमारा राजा इतना मूर्ख है कि गुसलखाने
में खीरे खाता है।” यह सुनकर राजा क्रोधित हो गया और बोला, “यह तुम क्या कह रहे हो? अगर तुम मेरे सेवक न होते, तो मैं तुम्हें तुरंत दंड देता।”
सेवक ने फिर से माफी मांगी और कहा कि वह अब कभी ऐसा नहीं करेगा। राजा ने सोचा, “जब यह मेरे बारे में इतनी
झूठी बातें कह सकता है, तो हो सकता है कि इसने दंतिल के बारे में भी झूठ बोला हो।”
राजा ने अपनी गलती समझी और अगले ही दिन दंतिल को उसकी खोई प्रतिष्ठा और अधिकार वापस दे दिए।
सीख:
हर व्यक्ति, चाहे बड़ा हो या छोटा, समान सम्मान का अधिकारी है। हमें सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।