एक गांव में सम्भुदयाल नामक एक ब्राह्मण रहता था। एक दिन उसे अपने यजमान से दक्षिणा में एक
बकरा मिला। वह बकरे को कंधे पर उठाकर घर की ओर जा रहा था। रास्ता लंबा और सुनसान था।
रास्ते में तीन ठगों ने उसे देखा और बकरे को हथियाने की योजना बनाई। जब ब्राह्मण कुछ दूर चला, तो पहला ठग उसके पास आया और बोला,
“पंडित जी, यह आप क्या कर रहे हैं? ब्राह्मण होकर कंधे पर कुत्ता उठाए घूम रहे हैं? यह तो बड़ा अनर्थ है।”
ब्राह्मण ने उसे झिड़कते हुए कहा,
“अंधा हो गया है क्या? यह कुत्ता नहीं, बकरा है।”
पहला ठग मुस्कुराता हुआ बोला,
“आपको जो समझना है, समझिए। मेरा काम बस सच बताना था।”
ब्राह्मण आगे बढ़ा। थोड़ी दूर चलने पर दूसरा ठग मिला। उसने भी ब्राह्मण को रोककर कहा,
“पंडित जी, आप तो विद्वान व्यक्ति हैं। यह क्या कर रहे हैं? उच्च कुल के लोगों को कुत्ता अपने कंधे पर नहीं लादना चाहिए।”
ब्राह्मण ने गुस्से में कहा,
“क्या तुम सब पागल हो? यह कुत्ता नहीं, बकरा है!”
दूसरा ठग मुस्कुराकर बोला,
“आप सही कह रहे हैं तो ठीक है। मेरा काम बस आपको चेताना था।”
अब ब्राह्मण थोड़ा असमंजस में आ गया, लेकिन फिर भी वह आगे बढ़ गया। आगे उसे तीसरा ठग मिला। उसने भी ब्राह्मण को रोका और कहा,
“पंडित जी, आप क्यों कुत्ता लेकर जा रहे हैं? लोग आपका मजाक उड़ाएंगे।”
तीसरे ठग की बात सुनते ही ब्राह्मण को यकीन हो गया कि वह सचमुच कुत्ता लेकर चल रहा है। उसने सोचा, ‘इतने लोग झूठ तो नहीं बोल सकते।’
उसने बकरे को कंधे से उतारा और उसे वहीं छोड़कर आगे बढ़ गया।
पीछे से तीनों ठग उस बकरे को ले गए, उसे मारकर खूब दावत उड़ाई।
सीख:
अगर झूठ को बार-बार दोहराया जाए, तो वह सच जैसा लगने लगता है।
बिना सोचे-समझे दूसरों की बातों पर विश्वास न करें। अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग करें।