अकबर बीरबल की कहानियाँ | Akbar Birbal Story in Hindi
एक समय की बात है, एक व्यापारी किसी ज़रूरी काम से कई दिनों के लिए अपने राज्य से बाहर गया हुआ था। वह काम खत्म करके जैसे ही शाम ढलते-ढलते घर पहुंचा, तो दरवाज़े खोलते ही उसका दिल धक् से रह गया।
तिजोरी के दरवाज़े खुले थे।
अंदर रखा सोना, चांदी, गहने… सब गायब!
एक सिक्का भी नहीं बचा था।
व्यापारी ने हाथों से सिर पकड़ लिया।
“हे भगवान, ये क्या हो गया? मेरी बरसों की कमाई… सब लुट गया!”
उसने तुरंत अपने पांचों नौकरों को बुलाने का आदेश दिया।
कुछ ही देर में पांचों नौकर घबराए-घबराए उसके सामने खड़े थे।
व्यापारी गुस्से से गरज उठा,
“तुम लोग यहाँ रहते हो, फिर भी इतनी बड़ी चोरी हो गई? किसने किया ये सब? बताओ!”
एक नौकर डरते हुए बोला,
“मालिक… हमें कुछ नहीं पता। हम तो उस रात सो रहे थे।”
दूसरा बोला,
“जी मालिक, पूरे घर में सन्नाटा था, हमें कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी।”
तीसरा हाथ जोड़कर बोला,
“हम बिल्कुल निर्दोष हैं, मालिक!”
व्यापारी चिल्लाया,
“निर्दोष? फिर चोरी किसने की? घर में और कोई रहता ही नहीं!
मुझे यकीन है—तुम पाँचों में से कोई एक चोर है!
अब फ़ैसला बादशाह अकबर करेंगे!”
अगले दिन व्यापारी अकबर के दरबार में पहुंचा।
“महाराज, मेरी तिजोरी खाली कर दी गई… कृपया न्याय करें!”
Akbar Birbal Story in Hindi
अकबर ने गंभीरता से पूछा,
“क्या तुम्हें किसी पर शक है?”
व्यापारी बोला,
“महाराज, शक तो सब पर है… क्योंकि घर में वही पाँच नौकर थे।”
अकबर ने तुरंत बीरबल की ओर देखा,
“बीरबल, यह मामला तुम्हें सौंपता हूँ। चोर को ढूंढना अब तुम्हारी जिम्मेदारी है।”
बीरबल हाथ जोड़कर बोले,
“आज्ञा महाराज। सच्चाई जल्द सामने लाऊंगा।”
अगले दिन बीरबल व्यापारी के घर पहुंचे। नौकरों को एक कतार में खड़ा कर दिया गया।
बीरबल ने शांत आवाज़ में पूछा,
“उस रात तुम सब कहाँ थे?”
सभी ने एक जैसा जवाब दिया,
“हम घर में ही सो रहे थे!”
बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा,
“मैं तुम्हें पाँच ‘जादुई लकड़ियाँ’ देता हूँ।
जो भी तुममें चोर होगा, उसकी लकड़ी अगली सुबह दो इंच बढ़ जाएगी।
बाकी सबकी वैसी की वैसी रहेगी।”
नौकरों ने लकड़ियाँ लीं।
कुछ डर गए, कुछ ने निर्लिप्त चेहरा बनाए रखा।
उस रात किसी ने नींद नहीं ली।
चोर अकेला वो था, जिसे सबसे ज्यादा डर ने घेर रखा था।
“अगर लकड़ी बढ़ गई तो मेरी चोरी पकड़ी जाएगी… मुझे कुछ करना होगा!”
Akbar Birbal Story in Hindi
सब पाँचों नौकर अगले दिन बीरबल के सामने हाज़िर हो गए।
बीरबल ने एक-एक लकड़ी देखी।
पहली लकड़ी—जैसी की तैसी।
दूसरी—यही।
तीसरी—सामान्य।
चौथी—ठीक।
लेकिन पाँचवीं लकड़ी…
दो इंच छोटी थी।
बीरबल ने तुरंत सैनिकों को आदेश दिया,
“इस नौकर को पकड़ लो!”
व्यापारी चौंकते हुए बोला,
“पर बीरबल जी, आपने कहा था चोर की लकड़ी तो लंबी होगी… ये तो छोटी हो गई!”
बीरबल मुस्कुराए,
“व्यापारी जी, लकड़ियाँ जादुई नहीं थीं।
मैंने तो बस मनोविज्ञान का खेल खेला है।”
फिर बोले,
“चोर को लगा कि रात में लकड़ी सच में लंबी हो जाएगी।
इस डर से उसने अपनी लकड़ी को दो इंच काट दिया…
और इसी डर ने उसे बेनकाब कर दिया।”
नौकर सहम गया और घुटनों पर गिरकर बोला,
“महाराज, माफ़ कर दीजिए! चोरी मैंने ही की… लालच में ये सब कर बैठा…”
व्यापारी ने सुकून की सांस ली।
“बीरबल जी, आपकी बुद्धिमानी का क्या जवाब! आज तो सच में चोर पकड़ ही लिया!”
अकबर ने भी सुनकर बीरबल की तारीफ की और चोर को उचित दंड देने का आदेश दिया।
शिक्षा:
गलत काम करने वाला अपनी ही चाल में फंस जाता है। ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं। चतुराई और मनोविज्ञान से बड़े से बड़ा रहस्य खोला जा सकता है।




