अकबर बीरबल की कहानियाँ | Akbar Birbal Moral Story
एक बार की बात है, बादशाह अकबर बाज़ार से एक रंग-बिरंगा, खूबसूरत और मीठी बोली वाला तोता खरीदकर लाए। तोता इतना प्यारा और मनमोहक था कि अकबर उसकी देखभाल किसी आम इंसान को नहीं, बल्कि एक खास सेवक को सौंपना चाहते थे।
अकबर ने सेवक को सख्त हिदायत दी—
“अगर तोता मर गया, तो तुम्हें मौत की सज़ा मिलेगी। और अगर किसी ने कहा कि तोता मर गया, तो उसे भी मौत की सज़ा दी जाएगी। समझे?”
सेवक का चेहरा पीला पड़ गया। जैसे किसी ने उसकी नसें जकड़ ली हों। लेकिन उसे हुक्म मानना था, इसलिए वह पूरे मन से तोते की देखभाल में जुट गया।
हर दिन वह तोते के आगे खाना रखता, उसे पानी देता, उससे बात करता, पंख साफ करता — मानो उसकी जिंदगी का बस एक ही काम हो: “तोते को जिंदा रखना।”
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।
एक सुबह सेवक पिंजरे के पास पहुंचा तो उसकी सांसें अटक गईं —
तोता बिलकुल शांत पड़ा था…
न फुदक रहा था, न आँखें खुली थीं…
वह मर चुका था।
Akbar Birbal Moral Story
सेवक की दुनिया घूम गई।
“अब मैं क्या करूँ? अगर बताऊँ तो मौत। न बताऊँ तो भी मौत!”
वह पसीने-पसीने हो गया। आखिरकार वह भागकर बीरबल के पास पहुंचा।
हांफते हुए बोला,
“बीरबल जी, तोता… तोता…”
बीरबल ने उसे रोका, पानी दिया और बोला,
“डर मत, पहले बैठो। अब बताओ क्या हुआ?”
सेवक रोते हुए बोला,
“तोता मर गया है! और बादशाह ने कहा था कि मैं मर जाऊँगा!”
बीरबल ने मुस्कुराकर कहा,
“चिंता मत करो। तोते से दूर रहो। मैं बादशाह से बात करता हूँ।”
अब बीरबल दरबार पहुँचे।
सिर झुकाकर बोला,
“महाराज, आपके तोते के बारे में एक महत्वपूर्ण बात है।”
अकबर तुरंत बोले,
“क्या हुआ? जल्दी बताओ!”
बीरबल ने धीरे-धीरे कहा,
“महाराज, तोता… न बोल रहा है… न खा रहा है… न पी रहा है… न उड़ रहा है… न फुदक रहा है… और पिंजरे में लेटा हुआ है… उसकी आंखें भी बंद हैं।”
अकबर झल्ला उठे,
“अरे ये सब क्यों बता रहे हो? साफ-साफ बोलो कि तोता मर गया!”
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जैसे ही यह शब्द अकबर के मुंह से निकले, बीरबल ने तुरंत हाथ जोड़कर विनम्रता से कहा—
“महाराज, अब बताइए… मौत की सज़ा किसे दी जाएगी?”
अकबर चौंक गए,
“क्या मतलब?”
बीरबल शांत स्वर में बोले,
“आपने कहा था कि जो यह कहेगा कि ‘तोता मर गया’, उसे मौत की सज़ा मिलेगी। अभी-अभी आपने स्वयं वही शब्द कहे हैं। तो अब किसे दंड मिलेगा, महाराज?”
अकबर कुछ पल तो स्तब्ध रहे…
फिर अचानक हँसते-हँसते दोहरे हो गए।
उन्होंने अपनी गलती मान ली और सेवक को दरबार बुलाकर घोषणा की—
“सेवक पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। तोते की प्राकृतिक मौत हुई है। किसी का दोष नहीं।”
दरबार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
और एक बार फिर साबित हो गया —
जहाँ तर्क और चतुराई की ज़रूरत हो, वहाँ बीरबल का कोई मुकाबला नहीं।
शिक्षा:
क्रोध में दिया गया गलत आदेश स्वयं पर ही भारी पड़ सकता है। बुद्धिमानी और शांत दिमाग किसी भी मुसीबत को सरलता से हल कर सकते हैं।




