एक घने जंगल में एक पेड़ पर एक गौरैया का घोंसला था। एक ठंड भरी सर्द रात में, कुछ बंदर ठंड से कांपते हुए
उसी पेड़ के नीचे आकर रुक गए। ठंड से बचने का उपाय सोचते हुए, उनमें से एक बंदर बोला, “अगर कहीं से आग मिल जाए, तो ठंड
दूर हो सकती है।”
दूसरा बंदर बोला, यहां तो बहुत सारी सूखी पत्तियां पड़ी हैं। इन्हें इकट्ठा करते हैं और आग सुलगाने का उपाय करते हैं।
बंदरों ने मिलकर सूखी पत्तियों का एक बड़ा ढेर बनाया और सोचने लगे कि इसे कैसे जलाया जाए।
तभी एक बंदर की नजर आसमान में उड़ते हुए एक जुगनू पर पड़ी। वह उछलते हुए बोला, “देखो, यह हवा में उड़ती चिंगारी
है। इसे पकड़कर ढेर के नीचे रख देंगे और आग सुलगा लेंगे।”
उसकी बात सुनकर बाकी बंदर भी दौड़कर जुगनू को पकड़ने की कोशिश करने लगे।
पेड़ के ऊपर बैठी गौरैया यह सब देख रही थी। वह उनसे बोली, “बंदर भाइयों, यह चिंगारी नहीं, जुगनू है। इससे आग
नहीं सुलग सकती।”
एक बंदर गुस्से में गुर्राते हुए बोला, “चुप रह, मूर्ख चिड़िया! हमें मत सिखा।
आखिरकार, एक बंदर ने जुगनू को पकड़ लिया और उसे सूखी पत्तियों के ढेर के नीचे रख दिया। फिर सभी बंदर ढेर में फूंक मारने लगे।
गौरैया से यह देखा नहीं गया और उसने फिर से सलाह दी, “बंदर भाइयों, जुगनू से आग नहीं जलेगी। दो पत्थरों को आपस में टकराकर चिंगारी
पैदा करो, तभी आग सुलगेगी।”
बंदर इस बार भी गौरैया की बात नहीं माने। गुस्से से खीजे एक बंदर ने कहा, “तू बार-बार बोलती क्यों है? चुपचाप अपने घोंसले में बैठी रह।”
जब आग सुलगाने की उनकी हर कोशिश नाकाम हो गई, तो गौरैया ने एक और सुझाव दिया, “भाइयों, दो सूखी लकड़ियों को रगड़कर आग जलाने की कोशिश करो।”
अब बंदरों का गुस्सा चरम पर पहुंच चुका था। एक बंदर ने क्रोध में आकर गौरैया को पकड़ लिया और जोर से पेड़ के तने पर पटक दिया। बेचारी गौरैया नीचे गिरकर मर गई।
सीख:
बिना मांगे किसी को सलाह नहीं देनी चाहिए, खासकर मूर्ख व्यक्तियों को।
मूर्ख को सीख देना अपना नुकसान करना है।