तेनाली रामा और राजा कृष्णदेव राय की परीक्षा | Tenali & Enemy King

Tenali Rama Motivational Story in Hindi of Tenali and enemy king

विजयनगर राज्य और उसके पड़ोसी राज्य के बीच तनाव बढ़ रहा था। यह विवाद लंबे समय से चल रहा था, और दोनों राज्यों के बीच समझौता करने के प्रयास असफल हो चुके थे। इस बीच, तेनाली रामा के विरोधियों को यह एक सुनहरा अवसर दिखा, जो तेनाली रामा को राजा कृष्णदेव राय के खिलाफ भड़काने का था। उन्हें लगता था कि अगर वे तेनाली रामा को दोषी साबित कर सके, तो राजा की नजर में उनकी अहमियत बढ़ सकती है और वे खुद को दरबार में स्थापित कर सकते हैं।

एक दिन राजा कृष्णदेव राय अपने बगीचे में अकेले बैठकर पड़ोसी राज्य के मुद्दे पर सोच रहे थे। उनका मन बहुत व्याकुल था, क्योंकि उन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए बहुत प्रयास किए थे, लेकिन स्थिति और भी खराब होती जा रही थी। इसी बीच, एक दरबारी ने राजा के पास आकर, धीरे-धीरे झांकते हुए उनके कान में कहा, “महाराज, क्या आप कुछ सुन रहे हैं?” राजा चौंक गए और पूछा, “क्या हुआ?”

दरबारी ने धीरे से कहा, “महाराज, मुझे खेद है, लेकिन मुझे पहले जान बख्शने का वचन चाहिए, ताकि मैं आपसे कुछ कह सकूं।” राजा ने कहा, “जो भी कहना हो, बिना डर के कहो।” दरबारी ने कहा, “महाराज, तेनाली रामा हमारे पड़ोसी राजा से मिले हुए हैं और वे चाहते हैं कि हमारे संबंध बिगड़ जाएं। वे हमारे राज्य को कमजोर करने की साजिश कर रहे हैं।”

राजा कृष्णदेव राय ने गुस्से में आकर कहा, “क्या बकवास कर रहे हो? तेनाली रामा ऐसा नहीं कर सकते!” दरबारी ने फिर कहा, “महाराज, आपको तो हमेशा उनकी सच्चाई पर विश्वास है, लेकिन मुझे विश्वास है कि यह सूचना सही है। मैंने यह पूरी तरह से जांच कर के आपको बताया है।”

राजा ने यह सुनकर सोचना शुरू किया और कहा, “ठीक है, मैं इस मामले की जांच करूंगा। अगर तेनाली रामा दोषी पाए गए, तो मैं उसे सजा दूंगा।” दरबारी खुश होकर वापस चला गया, और राजा ने अगले दिन तेनाली रामा को बुलवाया।

जब तेनाली रामा दरबार में आए, तो राजा ने उनसे कहा, “तेनाली रामा, हमें सूचना मिली है कि तुम हमारे शत्रु से मिले हो और हमारे राज्य को उनके अधीन करना चाहते हो।” तेनाली रामा को यह सुनकर बहुत आघात लगा, और वह बिल्कुल चुप हो गए। राजा ने जब उन्हें चुप देखा, तो और गुस्से में आ गए और कहा, “क्या तुम अपना अपराध स्वीकार कर रहे हो?”

तेनाली रामा की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उन्होंने कहा, “महाराज, मैंने कभी भी आपकी बातों का विरोध नहीं किया और न ही कभी करूंगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि ऐसा कुछ नहीं है।” लेकिन राजा कृष्णदेव राय के गुस्से ने तेनाली रामा को और भी दबाव में डाल दिया। उन्होंने आदेश दिया, “तुमने जिस पड़ोसी राज्य से सांठ-गांठ की है, अब उसी राज्य में जाकर रहो। तुम कल ही राज्य छोड़ दो।”

तेनाली रामा ने सिर झुका कर राजा के आदेश को स्वीकार किया। उन्होंने कोई विरोध नहीं किया, लेकिन उनके दिल में बहुत दर्द था। वे चुपचाप राज्य छोड़ने के लिए तैयार हो गए। दरबारियों को यह सुनकर खुशी हुई, क्योंकि वे समझ रहे थे कि अब तेनाली रामा का प्रभाव खत्म हो जाएगा और वे खुद अपनी स्थिति को मजबूत कर सकते थे।

अपने राज्य से बाहर निकलकर शत्रु राज्य की राजधानी पहुंचे। वहां उन्होंने शत्रु राजा से मुलाकात की। तेनाली रामा ने शत्रु राजा की खूब प्रशंसा की और उनके गुणों का बखान किया। शत्रु राजा ने तेनाली रामा से पूछा, “तुम कृष्णदेव राय के सचिव हो, फिर भी हमारे राज्य में बिना डर के आए हो?”

तेनाली रामा ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया, “महाराज, आप एक महान शासक हैं, और मेरे राजा भी आपके जैसे ही श्रेष्ठ शासक हैं। वे आपको शत्रु नहीं, मित्र मानते हैं। यही भ्रम दूर करने के लिए मैं आपके पास आया हूं।”

राजा ने कहा, “लेकिन हमारे जासूसों ने हमें बताया है कि कृष्णदेव राय हम पर हमला करने की योजना बना रहे हैं।” तेनाली रामा ने उत्तर दिया, “यह बिल्कुल गलत है। हमारे गुप्तचरों ने भी यही रिपोर्ट दी थी, लेकिन कृष्णदेव राय के दिल में शांति है। वे युद्ध नहीं, सुलह चाहते हैं।”

राजा को तेनाली रामा की बातों का असर हुआ और उन्होंने सुलह की संभावना पर विचार किया। तेनाली रामा ने कहा, “आप उपहार और एक सन्धि पत्र भेजें, अगर महाराज कृष्णदेव राय इसे स्वीकार कर लें, तो यह मित्रता का संकेत होगा। और अगर वे इसे लौटाएं, तो मुझे दंड देने का अधिकार आपके पास होगा।”

अगले ही दिन, एक दूत को उपहार और सन्धि पत्र के साथ भेज दिया। जब यह खबर राजा कृष्णदेव राय तक पहुंची, तो उन्होंने तुरंत तेनाली रामा को बुलाया। उन्होंने तेनाली रामा की बुद्धिमानी की सराहना की और सन्देश का उत्तर भेजने के लिए मंत्री को भेजा।

राजा कृष्णदेव राय ने शत्रु राजा को पत्र भेजा, जिसमें तेनाली रामा को तुरंत वापस भेजने का आदेश दिया गया। जब तेनाली रामा विजयनगर लौटे, तो राजा ने उनका भव्य स्वागत किया और उन्हें पुरस्कार दिया। दरबारी, जिन्होंने तेनाली रामा के खिलाफ षड्यंत्र रचा था, अब शर्म से पानी-पानी हो गए। उन्हें समझ में आ गया कि तेनाली रामा के खिलाफ झूठी बातें फैलाने से उन्हें केवल अपमान ही मिलेगा।

राजा कृष्णदेव राय ने तेनाली रामा को और भी सम्मान दिया, और राज्य में शांति स्थापित करने के लिए उनके योगदान की सराहना की। तेनाली रामा की समझदारी और धैर्य ने न केवल उनके खिलाफ षड्यंत्र को नाकाम किया, बल्कि राज्य में एक नई मित्रता की शुरुआत भी की।

शिक्षा :

साहस और धैर्य से बड़ी से बड़ी मुसीबत का समाधान किया जा सकता है। सच और ईमानदारी हमेशा जीतती है।

आशा है यह तेनाली रामा की कहानी (Tenali Rama Motivational Story in Hindi) आपको दिलचस्प और रोचक लगी होगी। इसी तरह की और भी प्रेरणादायक, मजेदार, मोटिवेशनल, जीवन को दिशा देने वाली और नैतिक मूल्यों से भरपूर कहानियाँ पढ़ने के लिए “होम पेज” (Home) पर अवश्य जाएं। वहाँ हिंदी कहानियों का एक विशाल और अनोखा संग्रह आपका इंतज़ार कर रहा है। यह संग्रह हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए खासतौर पर चुना गया है, जिसमें नई-पुरानी, छोटी-बड़ी, क्लासिक और रोचक कहानियाँ शामिल हैं, जो आपको प्रेरणा, आनंद और नई सोच से भर देंगी

Share on

Scroll to Top